सावन – क्यों भगवान शिव ने चंद्रमा को अभिशाप दिया?

भगवान शिव और श्रावण मास का महत्व

“भगवान शिव हिन्दू धर्म में त्रिदेवों में से एक हैं। उन्हें ‘महादेव’ भी कहा जाता है।” वे सृष्टि के संहारक और पुनर्निर्माणकर्ता हैं। ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णु जी पालनकर्ता हैं, और भगवान शिव संहारक हैं। उनके प्रमुख प्रतीक हैं त्रिशूल, नंदी बैल, और गंगा की धारा। शिवजी का अभिषेक और ध्यान हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए हलाहल विष को पिया और मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया।

श्रावण मास” हिन्दू कैलेंडर के अनुसार साल का पांचवा महीना होता है, जो विशेष रूप से शिवजी की पूजा और व्रत के लिए जाना जाता है। इस महीने में विशेष पूजा, व्रत, और भजन किए जाते हैं। इसे शिव पूजा और तपस्या का समय माना जाता है, और इस दौरान कई लोग व्रत रखते हैं और शिवजी की आराधना करते हैं। यह महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय है, क्योंकि इसी दौरान माता पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।

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                                                                                                          भगवान शिवजी की पूजा
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चंद्रमा का अभिमान और भगवान शिव का क्रोध

” समुद्र मंथन ” के दौरान, समुद्र से अमृत, विष और कई अन्य चीजें बाहर आईं। देवताओं ने अमृत पिया, जबकि भगवान शिव ने विष को अपने गले में रखा। इसके कारण उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। इसी मंथन के दौरान, चंद्रमा भी समुद्र से प्रकट हुआ।

 रावण को अहंकार का पाठ

एक बार, रावण अपने ‘पुष्पक विमान’ पर सवार होकर भ्रमण के लिए निकला। पुष्पक विमान की खासियत थी कि वह मन की गति से चलता था। ‘लेकिन’, जब रावण कैलाश पर्वत के पास पहुंचा तो विमान की गति अचानक रुक गई। उसे पता चला कि भगवान शिव की अनुमति के बिना कोई भी कैलाश पर्वत पर प्रवेश नहीं कर सकता।

अहंकारी रावण ने सोचा कि वह कैलाश पर्वत को ही उठा लेगा। उसने अपनी पूरी ताकत से पर्वत को उठाने की कोशिश की, लेकिन भगवान शिव ने उसे अपनी शक्ति से रोक दिया। शिवजी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया, जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और उसे तीव्र दर्द महसूस हुआ।

दर्द से कराहते हुए रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने भगवान शिव की स्तुति करने का निर्णय लिया और शिवजी की भक्ति में “शिव तांडव स्तोत्र” की रचना की। शिवजी उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गए और रावण को भार मुक्त कर दिया।

शिवलिंग की उत्पत्ति और भगवान शिव का अद्भुत प्रकट

शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा में एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बीच भारी विवाद हुआ। वे यह जानना चाहते थे कि उनमें से कौन सबसे शक्तिशाली और महान है। विवाद को सुलझाने के लिए, एक विशाल प्रकाश स्तंभ (जो बाद में शिवलिंग के रूप में जाना गया) प्रकट हुआ। जो भी इस स्तंभ का आरंभ या अंत ढूंढ लेगा, उसे सबसे महान माना जाएगा।

“इसलिए”,ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण कर आकाश में उड़ान भरी और स्तंभ के शीर्ष को खोजने की कोशिश की। विष्णु ने वराह का रूप धारण कर धरती में प्रवेश किया और स्तंभ के नीचे की ओर खोदते हुए खोज की। वे दोनों अनंत काल तक खोजते रहे, लेकिन स्तंभ का कोई अंत या आरंभ नहीं मिला। थककर, विष्णु वापस लौट आए और अपनी हार स्वीकार कर ली।

शिवलिंग की उत्पत्ति और भगवान शिव का अद्भुत प्रकट
शिवलिंग की उत्पत्ति और भगवान शिव का अद्भुत प्रकट

‘लेकिन’ ब्रह्मा ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक केतकी के फूल को झूठा गवाह बना दिया और कहा कि उन्होंने स्तंभ का शीर्ष ढूंढ लिया है। तभी, ‘भगवान शिव’ स्तंभ से प्रकट हुए। उन्होंने ब्रह्मा के झूठ का पर्दाफाश किया और उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा धरती पर कभी नहीं होगी। केतकी के फूल को भी श्राप दिया गया कि उसे कभी भी शिव पूजा में शामिल नहीं किया जाएगा। इस प्रकार,”शिवलिंग की उत्पत्ति’ हुई। ‘ब्रह्मा और विष्णु’ ने “शिवलिंग का सम्मान” किया और अपनी हार स्वीकार कर ली।

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