सौंदर्य और स्वस्थ जीवन का रहस्य छुपा है गौरी व्रत में, जानिए कैसे?

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गौरी व्रत और जया पार्वती व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में “गौरी व्रत” और “जया पार्वती व्रत” दो प्रमुख व्रत हैं जिन्हें विवाहित और कुंवारी महिलाएं श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाती हैं। ये व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के प्रति महिलाओं की गहरी आस्था और भक्ति को दर्शाते हैं।

गौरी व्रत की कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि वह उनके लिए एक विशेष व्रत करना चाहती हैं। भगवान शिव ने उन्हें गौरी व्रत करने का सुझाव दिया, जिसका उद्देश्य उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करना था। माता पार्वती ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ किया और इसके परिणामस्वरूप उन्हें अखंड सौभाग्य प्राप्त हुआ।

गौरी व्रत में, कुंवारी लड़कियां मिट्टी और बांस के छोटे-छोटे टुकड़ों का उपयोग खेत बनाने के लिए करती हैं। वे इन बांस के टुकड़ों को मिट्टी में गाड़कर एक खेत का आकार देती हैं। इसके बाद वे इस खेत में कुमकुम, अबील, गुलाल, माला और पुष्प चढ़ाकर अपनी मनोकामना को पूरा करने की प्रार्थना करती हैं।

जया पार्वती व्रत की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार एक ब्राह्मण महिला ने अपने पति पर पड़े शाप से छुटकारा पाने के लिए जया पार्वती व्रत किया था। यह महिला और उसका पति भगवान शिव के भक्त थे और उनकी भक्ति प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। लेकिन बच्चे न होने से वह बहुत दुखी थी। एक दिन उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने में सफलता पा ली और तुरंत ही उनसे एक बच्चे का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उन्हें एक विशेष लिंग की पूजा करने का आदेश दिया।

जब उसका पति पूजा के लिए फूल लेने जा रहा था, तो उसे सांप ने काट लिया और वह मर गया। इस घटना से वह बहुत दुखी हुई और भगवान शिव की ओर मुड़ी। भगवान शिव ने उसके पति को जीवित कर दिया और उन्हें एक बेटे का वरदान भी दिया। इस प्रकार जया पार्वती व्रत की परंपरा शुरू हुई।

तिथि का महत्व

गौरी व्रत आमतौर पर श्रावण मास (जुलाई) में मनाया जाता है। यह व्रत पांच दिन तक चलता है और श्रावण शुक्ल पक्ष की “अगिनी एकादशी” से शुरू होकर गुरु पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। जया पार्वती व्रत भी श्रावण मास में मनाया जाता है। यह व्रत श्रावण कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (13वीं तिथि) से शुरू होता है।

पूजा विधि का महत्व

गौरी व्रत और जया पार्वती व्रत में पूजा विधि का बहुत महत्व है। इन व्रतों में महिलाएं पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा करती हैं। व्रत में कुंवारी लड़कियां उपवास रखकर माता पार्वती की पूजा करती हैं। वे अपने “हाथों पर मेहंदी” लगाकर सजती हैं और भगवान शिव के मंदिर जाती हैं।

गौरी व्रत: स्वास्थ्य और सौंदर्य का लाभ

सौन्दर्य और त्वचा के लाभ

गौरी व्रत में महिलाएं नमक, मसाले और तली हुई चीजों का सेवन नहीं करती हैं। इससे उनकी त्वचा पर पिंपल्स या अन्य समस्याएं नहीं होती हैं। इस व्रत में महिलाएं गेहूं, दूध और फलों का सेवन करती हैं, जिससे उनका चेहरा निखरता है और त्वचा में चमक आती है।

शारीरिक सुंदरता और स्वास्थ्य का रहस्य

गौरी व्रत में महिलाएं नियमित भोजन से कम खाती हैं। इससे उनके पाचन अंग पर कम बोझ पड़ता है और वे शरीर में हल्कापन महसूस करती हैं। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।

मन पर नियंत्रण

गौरी व्रत में कड़े उपवास करने के लिए मन पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है। जब मन पर नियंत्रण होता है, तो स्वतः ही इंद्रियों पर भी नियंत्रण आ जाता है।

स्वस्थ और फिट जीवनशैली की दिशा

गौरी व्रत में कम खाने से वजन में कमी आती है। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है।

शांति और आनंद

गौरी व्रत को एक निश्चित उम्र और परिपक्वता के साथ सकारात्मक ढंग से करने से महिलाओं को शांति और आनंद का अनुभव होता है।

रात्रि जागरण का महत्व: भगवान की पूजा और आध्यात्मिक समृद्धि

“पहले, गौरी व्रत और जया पार्वती व्रत में आहार का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। इन व्रतों में महिलाएं कुछ खास प्रकार के आहार का सेवन करती हैं, जिनका उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती की प्रसन्नता प्राप्त करना है। गौरी व्रत और जया पार्वती व्रत में महिलाएं पांच दिन तक नमक का सेवन नहीं करती हैं और इसके बजाय गेहूं के आटे, दूध, घी और फलों का सेवन करती हैं। इस आहार चयन का उद्देश्य इन देवताओं की प्रसन्नता प्राप्त करना है।”

“इन व्रतों में रात्रि जागरण भी किया जाता है। रात्रि जागरण से महिलाओं का मन शांत और केंद्रित होता है। इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है और वे आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करती हैं। रात्रि जागरण के दौरान महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती का भजन-कीर्तन गाती हैं।”

व्रत में परंपरा और आध्यात्मिकता का संपूर्ण अनुभव

गौरी व्रत को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाकर, हम अपने जीवन में परंपरा, भक्ति और आध्यात्मिकता का अनुभव करते हैं। यह व्रत न केवल उपवास और पूजा का है, बल्कि देवी गौरी के साथ गहरा जुड़ाव प्राप्त करने का एक अवसर भी है। इस पवित्र व्रत में हम मंत्रों का जाप करते हैं, प्रियजनों को आशीर्वाद देते हैं और एक खास उपवास के साथ दिन मनाते हैं। यह हमारे जीवन में स्वास्थ्य, खुशी और समृद्धि लाता है। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, हम अपने परिवार और समुदाय के साथ संबंधों को मजबूत करते हैं और परमात्मा के साथ अपने संबंध को विकसित करते हैं। मंगला गौरी व्रत और जया पार्वती व्रत हमारे जीवन को पवित्रता, प्रेम और आध्यात्मिक प्रचुरता से भर देते हैं।