रक्षाबंधन के धागे और उनकी परंपरा: कब और कैसे शुरू हुई?

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परिचय

रक्षाबंधन, जिसे राखी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह उत्सव भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, और भाई उसकी सुरक्षा का वचन देता है। ‘रक्षाबंधन केवल एक रस्म‘ नहीं है; भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक यह उत्सव है, जहाँ बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उसकी सुरक्षा का वचन देता है।रक्षाबंधन, भाई-बहन के रिश्ते की गहराई, स्नेह, और समर्पण को दर्शाने का एक अनमोल अवसर मात्र नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में इसकी गहरी जड़ें हैं।

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  भाई-बहन का प्यार

भाई-बहन राखी

इस ब्लॉग में हम रक्षाबंधन के इतिहास, इसके पीछे की कहानियों, और इस त्योहार के आधुनिक रूपों के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके साथ ही, जानें कि यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को कैसे और भी खास बनाता है। रिश्ते प्यार और समझदारी से ही मजबूत होते हैं। इसी तरह की पौराणिक कहानियों और भारतीय त्योहारों के बारे में जानने के लिए, ‘गणेश चतुर्थी की कहानी और परंपराओं के बारे में पढ़ें।’

देवताओं की विजय की कथा

जब देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ, तो दानवों ने देवताओं को परेशान कर दिया। इस कठिन समय में, इंद्रदेव की पत्नी इंद्राणी ने एक पवित्र रेशमी धागा तैयार किया। उन्होंने इसे ‘मंत्र शक्ति के साथ इंद्रदेव की कलाई पर बांध‘ दिया। यह दिन श्रावण पूर्णिमा का था। इस परंपरा ने राजपुतों की महिलाओं द्वारा युद्ध के लिए जाते समय विजय की कामना के साथ माथे पर तिलक और हाथ में रेशमी धागा बांधने की परंपरा को जन्म दिया। इसके परिणामस्वरूप, रक्षाबंधन विजय और सुरक्षा का प्रतीक बना।

महाभारत से जुड़े किस्से

रक्षाबंधन का प्राचीनतम संदर्भ महाभारत में मिलता है। एक बार, भगवान कृष्ण की उंगली कट गई, और द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इसके बाद, भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया। यह घटना रक्षाबंधन की नींव मानी जाती है। अधिक जानने के लिए, ‘भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव’ पढ़ें।

वैदिक काल से रक्षाबंधन का जश्न

रक्षाबंधन की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। इसका नाम ‘रक्षा’ और ‘बंधन’ शब्दों से मिलकर बना है, जो सुरक्षा के बंधन का प्रतीक है। सदियों से यह त्योहार हिंदू समाज में विशेष रूप से मनाया जाता है, और समय के साथ इसके रूप और ढंग में भी बदलाव आए हैं।

रानी कर्णावती और हुमायूँ की कहानी

इतिहास में भी ‘रक्षाबंधन का उल्लेख’ मिलता है। एक प्रमुख कहानी ‘चित्तौड़ की रानी कर्णावती’ की है, जिन्होंने अपनी रक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी। हुमायूँ ने इसे स्वीकार कर उनकी रक्षा के लिए तुरंत अपनी सेना भेजी, जिससे इस त्योहार का महत्व और भी बढ़ गया।रानी कर्णावती और हुमायूँ की कहानी की तरह, रक्षाबंधन के इस विशेष अवसर पर बड़े भाई के लिए भी खास राखियाँ उपलब्ध हैं।

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श्रीकृष्ण और द्रौपदी: अटूट मित्रता और रक्षा का बंधन

बड़े भाई के लिए विशेष राखियाँ और छोटे भाई के लिए मजेदार

बड़े भाई के लिए रुद्राक्ष राखी, ओम राखी, कृष्ण राखी, और नलाचड़ी राखी जैसी विशेष राखियाँ शुभ मानी जाती हैं। ये राखियाँ भाई की सुरक्षा और आत्मिक शांति की कामना करती हैं, जो त्योहार के मूल उद्देश्य को दर्शाती हैं।छोटे भाई के लिए ” डोरेमोन, मोटू-पटलू,सुपरहीरो, छोटा भीम, मिकी माउस, टॉम एंड जेरी, मिनियंस, और एस्ट्रोनॉट “जैसे डिज़ाइन वाली राखियाँ उनकी मुस्कान को बढ़ा सकती हैं। इन राखियों की विविधता इस त्योहार को बच्चों के लिए और भी खास बनाती है।

राखी और भाभी: एक विशेष बंधन

आजकल “भाभी राखी” या “लुम्बा राखी” बांधने का ट्रेंड है, जो रिश्ते की विशेषता और महत्व को उजागर करता है। यह राखी भाभियों के लिए विशेष रूप से बनाई जाती है, जिससे बहनें अपने भाइयों और भाभियों दोनों के साथ यह त्योहार मना सकती हैं।

रक्षाबंधन का बदलता स्वरूप

रक्षाबंधन की परंपरा समय के साथ बदलती रही है। ‘लेकिन’ इसका मूल उद्देश्य – ‘भाई-बहन के प्यार और सुरक्षा के बंधन को मजबूत करना’ – आज भी वही है। ‘इसके अलावा,’ अब “राखी के त्योहार में नए रंग और नए रूप” देखने को मिलते हैं, जो इस पारंपरिक त्योहार को और भी खास बनाते हैं।

रक्षाबंधन का सांस्कृतिक और सामाजिक विकास

‘रक्षाबंधन की परंपरा’ समय के साथ विकसित हुई है। आज यह सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे दोस्त, चचेरे भाई और यहां तक कि पड़ोसी भी मनाते हैं। यह त्यौहार लोगों के बीच एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

‘रक्षाबंधन की परंपरा का इतिहास’ जानकर यह स्पष्ट होता है कि यह सिर्फ ‘एक त्योहार नहीं, बल्कि प्यार, सुरक्षा और सामूहिकता का प्रतीक’ है। यह त्योहार हमें रिश्तों की अहमियत और उनकी सुरक्षा के महत्व की याद दिलाता है। यह केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह विश्वभर में मनाया जाने वाला एक अनोखा उत्सव भी है।

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